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कलाकारों की मेहनत रंग लाई, माटी की प्रतिमाओं का ट्रेंड बढ़ा

- ईको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं की बढ़ी मांग, जनजागरुकता का असर - आज मंगलकारी श्रीगणेश की विराजेंगी प्रतिमाएं

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श्रीगणेश प्रतिमा घर लेकर जातीं श्रद्धालु।
श्रीगणेश प्रतिमा घर लेकर जातीं श्रद्धालु।

सिवनी. प्रथमपूज्य भगवान गणेश का दस दिवसीय उत्सव बुधवार से आरम्भ होने जा रहा है। एक दिन पूर्व मंगलवार को भी बढ़ी संख्या में लोग श्रीगणेश की प्रतिमाओं को अपने घर लेकर जाते नजर आए। इन प्रतिमाओं की स्थापना विधिविधान से सुसज्जित मंडप में आज होगा। गणेश उत्सव अब केवल भक्ति और आस्था का नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का भी पर्व बन चुका है। पिछले 8-10 सालों में शहर ही नहीं, पूरे जिले में गणेश प्रतिमाओं का स्वरूप बदल गया है। पहले जहां बाजार पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) की चकाचौंध मूर्तियों से भरा रहता था, वहीं अब 80 प्रतिशत से अधिक प्रतिमाएं मिट्टी से बन रही हैं। यह बदलाव अचानक नहीं आया, बल्कि कलाकारों की जिद, प्रशासन की पहल और लोगों की बढ़ती समझ ने मिलकर इसे संभव किया।


जिले में सार्वजनिक पंडाल और घरों में पांच हजार से अधिक छोटी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। समितियों सहित घर-घर लोग स्थापना कर विघ्नहर्ता की पूजा करते हैं। ये प्रतिमाएं मिट्टी, लकड़ी, पैरा व बांस से बनी होती हैं। मिट्टी की प्रतिमाएं प्रकृति का हिस्सा बनकर विसर्जन के बाद आसानी से पानी में घुल-मिल जाती हैं। ये नदियों और तालाबों को प्रदूषित नहीं करतीं। इसके विपरीत पीओपी की मूर्तियां सालों तक नहीं घुलतीं और जलाशयों की जीवनदायिनी धारा को दूषित करती हैं। यही कारण है कि आज भक्त मिट्टी के गणेश को ही सच्ची श्रद्धा और प्रकृति प्रेम का प्रतीक मान रहे हैं। यह सिर्फ बदलाव की नहीं, बल्कि सकारात्मकता और प्रतिबद्धता की कहानी है। गणेश उत्सव ने सिखाया है कि जब समाज, कलाकार, प्रशासन और श्रद्धालु साथ मिलते हैं, तो प्रकृति और आस्था दोनों सुरक्षित रहती हैं।


मूर्तिकार श्याम कुशवाहा बताते हैं कि मिट्टी की मूर्तियां पानी में 10-15 मिनट में घुलकर मिट्टी बन जाती हैं, जबकि पीओपी की मूर्तियां महीनों तक पानी में तैरती रहती हैं, जिससे जल प्रदूषण और जलीय जीवों को नुकसान होता है। कुछ वर्ष पहले तक बाजार में मिट्टी की प्रतिमाओं की मांग कम थी। पीओपी की चमकदार मूर्तियां तेजी से बिकती थीं। लोग कहते थे मिट्टी की मूर्तियां सुंदर नहीं दिखतीं, लेकिन हमने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे डिजाइन और रंगों में सुधार किया और लोगों को समझाया कि मिट्टी की प्रतिमा ही प्रकृति के अनुकूल हैं। पर्यावरणविद् कहते हैं कि मिट्टी की प्रतिमाओं को अपनाना जल संरक्षण और प्रदूषण रोकने की दिशा में बड़ा कदम है। तालाबों में पीओपी का न घुलना जलीय जीवन को नष्ट कर रहा था, लेकिन अब यह स्थिति बदल रही है।


भक्तों का अनुभव, श्रद्धा और संतोष
अपने घर पर गणेश प्रतिमा विराजित करने वाले विवेकानंद वार्ड सिवनी श्रद्धालु राजेश दीक्षित बताते हैं कि वे पिछले 8 सालों से केवल मिट्टी की प्रतिमा ही घर लाते हैं। गणपति बप्पा को पूजा के बाद प्रकृति को समर्पित करना सबसे सही लगता है। यह संतोष देता है कि हमारी आस्था से प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंच रहा। वहीं मनीष कश्यप कहते हैं कि मिट्टी के गणेश न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा करते हैं, बल्कि बच्चों को भी यह सीख देते हैं कि त्योहार मनाने का मतलब प्रकृति को नुकसान पहुंचाना नहीं है। पंकज बंदेवार कहते हैं कि पर्वों में हमें प्रकृति की सुरक्षा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हर साल वे ईको-फे्रंडली गणेशजी स्थापित करते हैं।


जहर घुलना नहीं हुआ बंद
भले ही लोगों में जागरूकता आ गई और लोग शत-प्रतिशत प्रतिमाओं का विसर्जन कृत्रिम कुंडों में करने लगे हैं, लेकिन नदियों में शहर के नालों का जहर घुलना बंद नहीं हुआ। अभी भी बेरोक-टोक नालों का गंदा पानी मिल रही है। सिस्टम वैनगंगा नदी के अमृत को विषैला किए जा रहा है। लोगों का कहना है कि क्या वजह है कि नदियों व जलस्रोतों में मिलने वाले नालों को प्रशासन रोक नहीं पा रहा।

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टिप्पणियाँ (43)

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है... यह निर्णय वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।

राहुल शर्मा
राहुल शर्माjust now

हाँ, ये सोचने वाली चीज़ है

सोनिया वर्मा
सोनिया वर्माjust now

दिलचस्प विचार! आइए इस पर और चर्चा करें।

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