AI-generated Summary, Reviewed by Patrika
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Shani Jayanti Katha Lessons: शनि देव के जन्म से दंडाधिकारी बनने और उसके आगे की कथा त्रासदी (Shani Dev Ki Katha Se Kya Sikhe) से भरी हुई है। एक तरफ तो इन उतार चढ़ावों से शनि के व्यक्तित्व के आयाम सामने आया तो लोगों को अपने जीवन में ऐसी घटनाओं के आने पर सही निर्णय लेने की सीख मिली। आइये जानते हैं वे अनूठी बातें जिसे शनि की कथा से सीख सकते हैं।
कहते हैं गुस्सा मनुष्य का दुश्मन है, यह विवेक को खा जाता है। गुस्से में सही निर्णय लेने में मनुष्य को दिक्कत होती है और इसका जीवन पर दुष्प्रभाव पड़ता है। जिस प्रकार सूर्य देव के शनि की मां छाया को संदेह के कारण अपमानित करने पर आए क्रोध से हमेशा के लिए पिता सूर्य से उनके संबंध बिगड़ गए।
दो लोगों के संबंध में पारदर्शिता बहुत जरूरी है, वर्ना संदेह उत्पन्न हो सकता है और धीरे-धीरे यह रिश्ते को नुकसानदायक पहुंचा सकता है। भगवान सूर्य के तेज से परेशान उनकी पत्नी संज्ञा तप के लिए गईं तो अपनी छाया को वहां प्रकट कर, लेकिन यह बात सूर्य देव को नहीं बताई। बाद में छाया और सूर्य देव से शनि का जन्म हुआ लेकिन छाया के तप से गर्भ में ही शनि का वर्ण काला हो गया। यह बात भी सूर्य देव को मालूम नहीं थी, जिससे सूर्य के संदेह के कारण पिता-पुत्र के रिश्ते खराब हो गए।
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क्षमा करना बड़प्पन की निशानी है। रहीम दास जी कहते हैं कि छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात, वहीं गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि बर्रै बालक एक सुभाऊ, इसी तरह यदि सूर्य देव शनि द्वारा किए अनादर को भूलकर उन्हें क्षमा कर देते तो पिता पुत्र के रिश्ते अच्छे होते, परिवार में क्लेश नहीं होता।
शनि देव अपनी मां छाया से अत्यंत प्रेम करते हैं, उनके मां के प्रति असीम आदर था। दूसरी महिलाओं को लेकर भी उनके मन में अत्यंत सम्मान था। मां की हर आज्ञा का वह पालन करते थे। इसी कारण जब सूर्य देव ने उनकी मां को अपमानित किया तो वो बर्दाश्त नहीं कर पाए और पिता को ही ग्रहण लगा दिया। मां के कहने पर क्षमा भी मांग ली, हालांकि सूर्य देव मन से क्षमा नहीं कर पाए।
शनि का जन्म सृष्टि में न्याय और अन्याय के निर्णय के लिए हुआ था। इसलिए उन्हें कर्मफलदाता और दंडाधिकारी का पद मिला। शनि देव ने इस जिम्मेदारी को हमेशा निभाया और इसके लिए कभी अपने पराए का भेद नहीं किया। बल्कि वस्तुनिष्ठ रूप से इसका निर्णय किया। गलती यानी मां का अपमान करने पर वो पिता को ग्रहण लगाकर दंड देने से नहीं रूके। एक और कथा के अनुसार जब शनि के अस्तित्व को जानने के लिए इंद्र ने शुक्राचार्य को उकसाया और उनके चक्रवात की चपेट में शनि की मां छाया आईं तो दंडाधिकारी ने पहले मां को बचाया। बाद में जब अपराध के दंड के लिए शुक्राचार्य को दोषी ठहराया जा रहा था तो शनि देव प्रकट होकर चक्रवात का असली दोषी इंद्रदेव को सिद्ध किया और कहा न्याय के लिए सबके लिए बराबर होते हैं चाहे वह देव हो या असुर। इंद्र देव को सजा के तौर पर अपना मुकुट धरती पर रखना पड़ा।
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Published on:
13 May 2025 07:18 pm


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