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आदि-अनादि काल से देवबंद में स्थित श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ देश-विदेश में रहने वाले लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। कहा जाता है क&zwj;ि मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी की उपासना करने वालों को भोग तथा मोक्ष दोनों प्राप्त होते हैं। <strong>प्रमाण</strong> शक्तिपीठ की पौराणिकता का प्रमाण मंदिर के द्वार पर लगे पत्थर पर अंकित उस भाषा से मिलता है, जिसे आज तक पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिक भी नहीं पढ़ पाए हैं। शक्तिपीठ का अंतिम जीर्णोद्धार राजा रामचंद्र महाराज द्वारा कराए जाने की बात प्रचलित है। <strong>क्षेत्रफल</strong> देवबंद के छोर पर स्थित श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ लगभग 34 बीघा भूमि में फैला हुआ है। इसमें मंदिर के अतिरिक्त विशाल देवीकुंड, मनमोहक पार्क, संस्कृत महाविद्यालय आदि भी हैं। इस शक्तिपीठ पर भारतीय शक-संवत के अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की चतुर्दशी पर मेला लगता है, जिसमें देश के कोने-कोने से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। <strong>किवंदती </strong> मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी यहां पीठ में एक छोटी प्रतिमा के रूप में विराजमान हैं। चांदी की इस मूर्ति को पुजारी आंखें बंद करके स्नान कराने के बाद चंदन व इत्र लगाते हैं और फिर वस्&zwj;त्र पहनाकर छिपा देते हैं। बताया जाता है कि पूर्व में किसी पुजारी ने भूलवश स्नान कराते समय आंखें खोल ली थी तो वह अंधा हो गया था। इसके अलावा एक और बात भी यहां काफी प्रचलति है। <strong>मान्&zwj;यता </strong> कहा जाता है क&zwj;ि शक्तिपीठ पर प्रतिवर्ष चैत्र सुदी चैदस से पहले तेज हवाएं वर्षा के साथ मां शक्तिपीठ में प्रवेश करती हैं और इसी प्रकार वापस लौटती हैं। ऐसा आदिकाल से होता आ रहा है। ऐसा क्यों होता है यह रहस्य अनसुलझा है। इसके बारे में कहा जाता है क&zwj;ि माता भगवती देवी मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं तथा लगभग एक सप्ताह के बाद तेज हवाओं व बूंदाबांदी के साथ ही माता त्रिलोकपुर (हिमाचल प्रदेश) के मुख्य मंदिर में वापस लौट जाती हैं। हालांकि, मंदिर से जुड़े पं. सतेंद्र शर्मा का कहना है कि माता सदैव इसी मंदिर में विराजमान रहती हैं। <strong>स्&zwj;थापना</strong> सिद्धपीठ श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी मंदिर की स्थापना कब और किसने की, इसके पुख्ता प्रमाण तो किसी के पास नहीं हैं, परंतु मारकंडे पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों से पता चलता है कि इस शक्तिपीठ की स्थापना महाभारत काल में हुई थी। <strong>ग्रंथों के अनुसार</strong> मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी मां महाशक्ति जगदम्बा का रूप हैं। ब्रहमा, विष्णु और महेश तीन पुर (शरीर) जिनमें हैं, वह त्रिपुर बाला हैं। तंत्र सार के मुताबिक, मां राजेश्वरी त्रिपुर बाला सुंदरी प्रातरू कालीन सूर्यमंडल की आभा वाली हैं। उनके चार भुजा एवं तीन नेत्र हैं। वह अपने हाथ में पाश, धनुष-बाण और अंकुश लिए हुए हैं जबक&zwj;ि मस्तक पर बालचंद्र सुशोभित है। <strong>कैसे पहुंचें</strong> देवबंद की दूरी दिल्ली से करीब 168 किलोमीटर है। दिल्ली से वाया मेरठ व मुजफ्फरनगर होते हुए देवबंद जा सकते हैं। वैसे यहां देीरादून रूट पर जाने वाली ट्रेेनें भी मिलती हैं लेकिन अपना या बस का साधन भी बेहतर हो सकता है। सड़क मार्ग से देवबंद जाने के लिए मुजफ्फरनगर से दिल्ली-हरिद्वार हाईवे छोड़ना होता है। फिर मुजफ्फरनगर से रोहाना मिल होते हुए सीधा रास्ता देवबंद जाता है।

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